ये जो घना अँधेरा है
वो ढलता क्यों नहीं
जिसको ज़्यादा चाहो
वो ही मिलता क्यों नहीं
ज़िन्दगी तेज़ रफ़्तार से चल कर
फिर आज राहें हैं थमी
मुस्कुराहटो के समंदर भर कर
लो आ गयी आँख में फिर वो नमी
वही मौसम, वो लम्हा है
क्या तेरी कमी तो नही
नहीं- नहीं अब हमें
तेरी जुस्तजू भी नही
बस अब बहुत हुआ
इस मर्ज़ का कोई इलाज ही नहीं
सपनो भरी ज़िन्दगी जी कर
आज, एक बार फिर, मैं वहीँ की वहीँ
मनु
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