Friday, December 16, 2011

कुछ सपने दुबारा फिर कभी नहीं दिखते...

बहुत कुछ कहना था
कुछ सवाल भी थे
पर हमेशा की तरह, वक़्त कम था |
घडी भर देखना चाहा
पर नज़रों की उधेड़ बुन लगी रही
और हमेशा की तरह वक़्त कम था |
बहुत कुछ सुनना चाहती थी
कुछ महसूस भी तो करना था
पर कैसे? वक़्त कम था |
एक सदी बाद मिले,
क्या कुछ/कोई बदला था?
शायद तुम? मै?
नहीं! जो बदला था वह "हम" था |
ये सच है,
मैने सबसे ज्यादा तुम्हारी चाहत को चाहा
आज मिलन में वो सच थोडा कम था |
वही तुम, वही मै, कुछ प्यार-सा भी था
बातें भी वही
नहीं था तो शायद वो हमदम था |
हंसी भी थी
पर वो ख़ुशी नहीं
शायद समां ही कुछ नम था |
आज कुछ भी हो
कल क्या होगा
बस यही एक ग़म था |
काश छुपा पाती तुम्हे अपने ही अन्दर
फिर कभी भी कुछ कम न होता |