Sunday, July 11, 2010

शायद...

जो चाहो वो मिल ही जाये ये ज़रूरी तो नहीं,
हर रात के बाद सुबह फिर आये ये ज़रूरी तो नहीं|

जो दिखता है वो मुकदर है या कि नहीं,
बूंद होंठो पे गिर के प्यास भी बुझा पाए ये ज़रूरी तो नहीं|

चाँद तारे रोज़ निकलते और दिखते भी हैं,
यूँ ही कभी कोई मिले और अपना बन पाए ज़रूरी तो नहीं|

शमा के इलावा भी सुलगते हैं ग़म ज़माने में,
हर सुलगना रौशनी कर जाये ये ज़रूरी तो नहीं|

- मनु