हर रात के बाद सुबह फिर आये ये ज़रूरी तो नहीं|
जो दिखता है वो मुकदर है या कि नहीं,
बूंद होंठो पे गिर के प्यास भी बुझा पाए ये ज़रूरी तो नहीं|
चाँद तारे रोज़ निकलते और दिखते भी हैं,
यूँ ही कभी कोई मिले और अपना बन पाए ज़रूरी तो नहीं|
शमा के इलावा भी सुलगते हैं ग़म ज़माने में,
हर सुलगना रौशनी कर जाये ये ज़रूरी तो नहीं|
- मनु
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